बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
उत्तर -
पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी के सम्बन्ध में कहा जाता है कि उन्होंने कीड़े से लेकर कुंजर तक सभी विषयों पर निबन्ध लिखे हैं और उनके द्वारा पाठकों को भावमग्न भी किया है और उनके विचारों को उत्तेजित भी। पंडित्यपूर्ण, भावोच्छवासमयी, काव्यात्मक शैली से पाठकों को विमुग्ध भी किया है। वस्तुतः उनके निबन्धों में एक ओर विषय-वैविध्य देखकर पाठक चकित होता है दूसरी ओर विषय के अनुरूप शैली का प्रयोग देखकर उनकी प्रतिभा का लोहा मानने को बाध्य होता है। उनके निबन्ध लेखन में निम्न शैलियाँ मिलती हैं -
(1) वर्णनात्मक शैली,
(2) विवेचनात्मक शैली
(3) गवेषणात्मक शैली
(4) भावात्मक शैली,
(5) काव्यमयी शैली,
(6) विक्षेप शैली।
(1) वर्णनात्मक शैली - दृश्य वस्तु स्थान का जीवन चित्रण करते समय वह इस शैली का प्रयोग करते हैं। उनकी यह शैली मूर्तिविधायिनी शैली है। लेखक ने कहीं वर्ण्य विषय का यथातथ्य वर्णन किया है तथा कहीं कल्पना के पंखों पर उड़कर, भाव तरंगों में तिरते हुए उनके सजीव चित्र प्रस्तुत किए हैं। इन वर्णनों में सहजता है, आत्मीयता है और चित्रात्मकता है। निबन्ध पढ़ते समय हमें लगता है कि हम दृश्य को अपनी आँखों से प्रत्यक्ष देख रहे हैं। इन स्थलों की भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहमय है।
कोमल हाथों में अशोक - मृपल्लवों का कोमलतर गुच्छ आया, अलम्तक से रंजित नूपुरमय चरणों के दु आघात से अशोक का वाद- देश आहत हुआ नीचे हल्की रुनसुन और ऊपर लाल फूलों का उल्लास। किसलयों ओर कुसुम- स्तवको की मनोहर छाया के नीचे स्फटिक के आसन पर अपने प्रिय को बैठाकर सुन्दरियाँ अबीर, कुमकुम, चन्दन और पुष्प- संथार से पहले कन्दर्प देवता की पूजा करती थीं और बाद में सुकुमार भंगिमा से पति के चरणों पर वसन्त-पुष्पों की अंजलि बिखेर देती थीं।
(2) विवेचनात्मक शैली - विषय का विवेचन करते समय इन्होंने विवेचनात्मक शैली का प्रयोग किया है। इसमें व्याख्या, तर्क-वितर्क प्रमाणों द्वारा पुष्टि, निर्णय का समावेश है। लेखक अपने विचार, मंतव्य निर्णय क्रमबद्ध प्रस्तुत करता है। इनमें प्रायः संस्कृत की तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया गया है। संघर्षों से मनुष्य ने नई शक्ति पाई है। हमारे सामने समाज का आज जो रूप है वह न जाने कितने ग्रहण और त्याग का रूप है। देश और जाति की विशुद्ध संस्कृति केवल बाद की बात है। सब कुछ में मिलावट है, सब कुछ अविशुद्ध है। शुद्ध है केवल मनुष्य की दुर्दम जिजीविषा। यह गंगा की अबाधित अनाहत धारा के समान सब कुछ को हजम करने के बाद भी पवित्र है।
( 3 ) गवेषणात्मक शैली - द्विवेदी जी का अध्ययन अत्यन्त गहन- गम्भीर और विशद है। साहित्य, संस्कृति, इतिहास, भाषा विज्ञान, मानव-विज्ञान समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र सबके वह अध्येता रहे हैं। वह अध्यापक तथा शोध निर्देशक रहे हैं। जिस विषय पर भी उन्होंने लिखा है, पहले उस विषय का गहन अध्ययन किया है, उसके विषय में अनुसन्धान किया है, उसकी गहराई तक जाने की उन्होंने प्राचीन ग्रंथों, शिलालेखों, मुद्राओं, मूर्तियों से ज्ञान प्राप्त कर निबन्ध लिखे हैं। अतः उनकी शैली में गवेषणा की प्रवृत्ति है। प्रस्तुत निबन्ध में आर्यों और आर्येत्तर जातियों में संघर्ष और उसके परिणाम के विषय में जो लिखा गया है वह गवेषणात्मक शैली का सुन्दर उदाहरण है- "आर्यों से अनेक जातियों का संघर्ष हुआ। कुछ ने अधीनता नहीं मानी, कुछ ज्यादा गर्वीली थीं। संघर्ष खूब हुआ। पुराणों में इसके प्रमाण हैं। सभी संघर्षकारी शक्तियाँ बाद में देवयोनिजात मान ली गयीं। पहला संघर्ष शायद असुरों से हुआ। वह बड़ी गर्वीली जाति थी। आर्यों का प्रभुत्व इसने नहीं माना। फिर दानवों, दैत्यों और राक्षसों से संघर्ष हुआ। गन्धर्वों और यक्षों में कोई नहीं हुआ। वे शायद शान्तिप्रिय जातियाँ थीं।"
(4) भावात्मक शैली - द्विवेदी जी का स्वभाव से सहृदय, भावुक, संवेदनशील व्यक्ति हैं। अतः सौन्दर्य, लालित्य, सुकुमारता उन्हें सहज ही मुग्ध कर लेते हैं। किसी सुन्दर दृश्य को देखकर वह भावोच्छ्वसित हो उठते हैं और उसका वर्णन करने लगते हैं तो उनकी शैली भावात्मक हो उठती है
अशोक में फिर फूल आ गये हैं। इन छोटे-छोटे लाल-लाल पुष्पों के मनोहर स्तवकों में कैसा मोहन भाव है। बहुत सोच समझकर कन्दर्प देवता ने लाखों मनोहर पुष्पों को छोड़कर सिर्फ पाँच को ही अपने तूणीर में स्थान देने योग्य समझा था। वह एक अशोक ही है।
(5) काव्यात्मक शैली - इस शैली में कमल को अलंकृत करने वाले काव्य के अनेक उपकरणों अलंकारों, बिम्बों, प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है, भाषा में लाक्षणिकता होती है और पाठक को लगता है कि वह गद्य में लिखी कविता का रसास्वादन कर रहा है। प्रस्तुत निबन्ध में लेखक ने इन सब उपकरणों का प्रयोग किया है।
मानवीकरण तथा उपमा (क) अशोक किसी कुशल अभिनेता के समान झम से रंगमंच पर आता है और दर्शकों को अभिभूत करके खप से निकल जाता है।
उपमा वह गंगा की अबाधित अनाहत धारा के समान सब कुछ को हजम करने के बाद भी पवित्र है।
(6) विक्षेप शैली - इस शैली में भाव और विचार प्रवाहमग्न जलधारा के समान प्रवाहित न होकर खण्ड-खण्ड होकर रुक-रुक कर अग्रसर होते हैं कैसा झबरा सा गुल्म है। मगर उदास होना भी बेकार है। अशोक आज भी उसी मौज में है, जिसमें आज से दो हजार वर्ष पहले था। कहीं भी तो कुछ नहीं बिगड़ा। कुछ भी तो नहीं बदला बदली है मनुष्य की मनोवृत्ति।
भावोच्छ्वास के समय, भावों के तीव्र होने पर जब लेखक का मन क्षुब्ध होता है तो वह प्रश्न करता है और प्रश्नों की झड़ी लगाकर मन के क्षोभ को प्रकट करता है। यहाँ भी आवेगपूर्ण और आवेशपूर्ण भाषा-शैली का प्रयोग हुआ क्या यह मनोहर पुष्प भुलाने की चीज थी ? सहृदयता क्या लुप्त हो गयी थी ? कविता क्या सो गयी थी ? ना, मेरा मन यह सब मानने को तैयार नहीं है। जले पर नमक तो यह कि तरंगायत पत्रवाले निफूले पेड़े को सारे उत्तर भारत में अशोक कहा जाने लगा।
द्विवेदी जी के निबन्धों को ललित, व्यक्ति व्यंजक निबन्ध कहा जाता है इस कोटि के निबन्धों में लेखक मन के भावों को प्रकट करता है और पाठकों के साथ आत्मीयता स्थापित करता हैं। प्रस्तुत निबन्ध में निम्नोक्त अवतरण में ये ही गुण हैं
पुष्पित अशोक को देखकर मेरा मन उदास हो जाता है। इसलिए नहीं कि सुन्दर वस्तुओं को हतभाग्य समझने में मुझे कोई विशेष रस मिलता है।... मेरी दृष्टि इतनी दूर तक नहीं जाती। फिर भी मेरा मन इस फूल को देखकर उदास हो जाता है।
'मुक्त आसंग का कलात्मक प्रयोग। वह विषय से हटकर कल्पना का लीला-विलास दिखाकर, विषयांतर करते हुए अन्य अनेक विषयों की चर्चा करने लगते हैं। प्रस्तुत निबन्ध में भी उन्होंने 'अशोक के फूल और अशोक के वृक्ष के प्रति लोक की भवमानना बताते हुए भारतीय इतिहास और संस्कृति के अनेक पन्नों पर लिखा है।
प्रभाकर माचवे कहते हैं 'अशोक के फूल' निबन्ध में लेखक अशोक के फूल के विषय में सोचते-सोचते भारतीय संस्कृति और मानव-प्रकृति तक चक्कर काट आता है और अन्त में पुनः विषय पर आ जाता है।
द्विवेदी जी के निबन्धों के विषय साहित्य तथा भारतीय संस्कृति से सम्बद्ध हैं तथा उनमें गूढ़, गंभीर विचारों की अभिव्यक्ति हुई है, अतः उनकी भाषा का प्रौढ़ प्रांजल तथा परिष्कृत होना स्वाभाविक ही है। उनकी भाषा में एक ओर संस्कृत भाषा का पूर्ण वैभव, हिन्दी भाषा की सम्पूर्ण शक्ति मिलती है तो दूसरी ओर लोकभाषा की सरसता तथा पैनापन भी मिलता है। वह एक ओर विदग्ध सुबुद्ध पाठकों को चमत्कृत करती है तो दूसरी ओर उसमें अनेक विचारों और भावों को जनसाधारण तक सम्प्रेषित करने, उसके मन-मानस में उतार देने की क्षमता है द्विवेदी जी भाषा के प्रयोग में मितव्ययी हैं। अतः उनकी अभिव्यक्ति में चुस्ती है, गठाव है। कहीं भी शब्द-स्फीति या अनावश्यक, अनर्गल विस्तार नहीं मिलता।
संस्कृत भाषा और साहित्य के उद्भट विद्वान होते हुए भी द्विवेदी जी का भाषा विषयक दृष्टिकोण उदार है। वह विशुद्धतावादी नहीं है, उनका लक्ष्य है बात को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करना तथा पाठक तक पहुँचना, उसे स्पष्ट करना। अतः उनका शब्द भंडार वैविध्यपूर्ण है। उसमें संस्कृत, उर्दू-फारसी, अंग्रेजी तथा बोलचाल के तद्भव और देशज शब्दों का प्रयोग किया गया है। संस्कृत के प्रचलित तत्सम शब्दों का प्रयोग तो हुआ ही है, कुछ शब्द उन्होंने स्वयं गढ़े हैं जैसे कुण्झटिकाछन्न। प्रायः व्यास शैली का प्रयोग होने के कारण संस्कृत शब्दों की बहुलता उनकी भाषा को दुरूह नहीं बनाती। प्रस्तुत निबन्ध में संस्कृत तत्सम शब्दावली के कुछ शब्द हैं - स्तवक, तूणीद, निर्गम, असिजनकारी, कणवितेस उर्दू फारसी के भी उन्हीं शब्दों का प्रयोग किया गया है जो प्रायः बोलचाल में प्रयुक्त होते हैं तथा जिनके प्रयोग से कथन में स्पष्टता तथा पैनापन आता है जैसे फूल, हिसाब, हजम, इशारा, गवाही, दुनिया, मिलावट, मौज, शर्त।
तद्भव शब्दों तथा मुहावरों के प्रयोग से कथन में वक्रता और तीखापन आ गया है।
1. झम से रंगमंच पर आया और खप से निकल गया।
2. जले पर नमक तो यह कि एक तरंगायित पत्रवाले निफूले पेड़ को अशोक कहा जाता है।
3. शिव से भिड़ने जाकर एक बार वह मिट चुके थे। अन्यत्र भी इस निबन्ध में प्रयुक्त देशज शब्दों भुलक्कड़, अचरण, अबरा-सा आदि के प्रयोग से भाषा की अभिव्यक्ति क्षमता बढ़ी ही है।
मुहावरे - मुहावरों के प्रयोग से गम्भीर विचार भी बड़े सहज से जान पड़ते हैं साथ ही उनके प्रयोग से उक्ति में वैचित्य आता है। इस निबन्ध में प्रयुक्त कुछ मुहावरे हैं जले पर नमक छिड़कना, मन का उमड़ना-घुमंड़ना, दुनिया अपने रास्ते चलती है।
व्यास शैली - द्विवेदी जी ने अधिकतर व्यास शैली का प्रयोग किया है। अतः उनके वाक्य सरलऔर छोटे-छोटे हैं, कार्य-व्यापार या घटना की भिन्नता को व्यक्त करते हैं।
असुर आये, आर्य आये, शक आये, हूण आये, नाग आये, यक्ष आये, गन्धर्व आये न जाने कितनी मानव जातियाँ यहाँ आयी और आज के भारतवर्ष को बनाने में अपना हाथ लगा गयीं। जटिल मनोदशा या कार्य-व्यापार की अभिव्यक्ति करते समय उन्होंने मिश्र संयुक्त वाक्यों का प्रयोग किया है। प्रश्नवाचक वाक्यों द्वारा अपने मन के आवेग को व्यक्त किया है क्या वह मनोहर पुष्प भुलाने की चीज थी ? सहृदयता क्या लुप्त हो गयी थी ? कविता क्या सो गयी थी ? विस्मयादिबोधक वाक्यों तथा सम्बोधनात्मक वाक्यों द्वारा लेखक पाठक से आत्मीयता स्थापित करता है मेरा मन प्राचीन काल के कुण्झटिकाच्छन्न आकाश में दूर तक उड़ना चाहता है। हाय, पंख कहाँ हैं। वाक्य गठन में लय लाकर उन्होंने कथन को संगीतमय बना दिया है।
वज्रयान इसका सबूत है, कौल-साधना इसका प्रमाण है और कापालिक मत इसका गवाह है।
द्विवेदी जी ने आचार्य शुक्ल की तरह अपने स्थान को सूत्रबद्ध करने की पद्धति तो नहीं अपनाई है फिर भी उनके निबन्धों में प्रयुक्त सूक्तियों मर्मस्पर्शी, प्रभावोत्पादक और तत्वपूर्ण हैं
(1) स्वर्गीय वस्तुएँ धरती से मिले बिना मनोहर नहीं होती।
(2) संसार स्वार्थ का अखाड़ा ही तो है।
(3) माया काटे कटती नहीं।
सारांश यह कि द्विवेदी जी की भाषा-शैली विषय के अनुरूप है। उसमें विषय को स्पष्ट करने, सूक्ष्म विश्लेषण करने तथा विचारों को सुसम्बद्ध करने की अपूर्व क्षमता है। उसमें उनका मौलिक चिन्तन पांडित्य, काव्यत्व तथा उनके हृदय की कोमलता भावुकता सभी प्रतिबिम्बित होते हैं।
आचार्य शुक्ल की तरह वह काव्य पंक्तियाँ उद्धृत कर कथन की पुष्टि करते हैं। इस निबन्ध में वह कालिदास की काव्य पंक्ति किसलय - प्रसवोअपि विलासिनां मयिता दयिताश्रवणार्पितः तथा श्री सुन्दरी साधनतत्पराणां योगश्च भोगश्च करस्थ एव द्वारा अपने मत का समर्थन करते हैं।
व्यंग्य प्रयोग - व्यंग्य प्रयोग उनकी निबन्ध रचनाओं को रोचक बनाता है- पण्डिताई भी एक बोझ है जितनी ही भारी होती है, उतनी ही तेजी से डुबाती है। लेखक का व्यक्तित्व उनके निबन्धों में सर्वत्र झाँकता है। द्विवेदी जी के व्यक्तित्व के प्रमुख गुण हैं भारतीय संस्कृति के प्रति दृढ़ निष्ठा, लोकमंगल की भावना या मानवता, पांडित्य विशद अध्ययन, सहृदयता एवं भावुकता। प्रस्तुत निबन्ध में उनके व्यक्तित्व के ये सभी पक्ष प्रतिबिम्बित हैं। रामायण, महाभारत, वामन पुराण, कालिदास के काव्य- नाटक, सरस्वती कण्ठाभरण मालविकाग्निमित्र, रत्नावली आदि ग्रन्थों का सदर्भ देकर उन्होंने भारतीय इतिहास और संस्कृति के विषय में जानकारी दी है। महादेव कामदेव का संघर्ष और उसमें कामदेव की पराजय तथा उसके धनुष के टूटकर फूलों में परिणत करने का प्रसंग मिथक प्रयोग का सुन्दर उदाहरण है।
इस प्रकार द्विवेदी जी की निबन्ध शैली में वैविध्य है, अनेकरूपता है, विषयानुरूपता है और इसी शैली के कारण वह हिन्दी के ललित निबन्धकारों में शीर्ष स्थान के अधिकारी हैं।
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- प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
- प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
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- प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
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- प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
- अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
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- प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
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- अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
- अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
- प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
- अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
- प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
- प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
- प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
- अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
- अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
- प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
- प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
- प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
- प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
- प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
- प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
- प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
- अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
- प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
- अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
- अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
- प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
- अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
- प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
- अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
- अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
- प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
- अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
- अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
- अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।